उप-राष्ट्रपति का भाषण – 'जनता की कहानी, मेरी आत्मकथा' पुस्तक विमोचन (संक्षिप्त अंश)

मुख्य बातें:
भावुकता और आत्मीयता से भरपूर आरंभ:
उपराष्ट्रपति ने वसंता जी को कार्यक्रम की सूत्रधार और आधार स्तंभ बताते हुए सराहना की।
व्यक्तिगत भावनाओं से जुड़ी स्मृतियों और स्व. वैष्णव के प्रसंग का उल्लेख किया, जिसने दो परिवारों को जोड़ा।
राजनीतिक व सामाजिक योगदान की सराहना:
मनोहर लाल खट्टर जी, अर्जुन राम मेघवाल जी, कलराज मिश्र, जगदीश मुखी, नायब सैनी, कार्तिकेय शर्मा, सुभाष बराला, दीपेंद्र हुड्डा, जयप्रकाश, और अन्य वरिष्ठ नेताओं का उल्लेख करते हुए उनके योगदान को रेखांकित किया।
विशेष रूप से अर्जुन राम मेघवाल द्वारा गांव में इंटरनेट न होने पर पेड़ पर चढ़कर चिकित्सा सुविधा दिलाने की घटना को उदाहरण बनाकर कर्मठता की मिसाल दी।
राज्यपाल की जीवनी पर विशेष टिप्पणी:
“जनता की कहानी, मेरी आत्मकथा” को एक अद्भुत जीवन यात्रा का प्रतिबिंब बताया।
नक्सल प्रभावित क्षेत्र में 1984 में राज्यपाल द्वारा अभिव्यक्ति और वाद-विवाद के सिद्धांत पर खड़े रहने की घटना को साहसिक करार दिया।
आपातकाल में 30 फुट ऊंचाई से कूदने की घटना को याद करते हुए भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में उसे ‘काला अध्याय’ कहा।
संविधान और लोकतंत्र पर विचार:
लोकतंत्र को जीवंत रखने के लिए ‘वाद-विवाद’, ‘संवाद’, और ‘चर्चा’ को आवश्यक बताया।
संविधान सभा के सदस्यों की तपस्या और राष्ट्रवाद को स्मरण कर वर्तमान को दिशा देने की अपील की।
प्रधानमंत्री और वर्तमान भारत की प्रगति:
पिछले 10 वर्षों में प्रधानमंत्री के नेतृत्व में चुनौतियों को अवसरों में बदलने की सराहना की।
भारत की अर्थव्यवस्था को चौथे स्थान पर पहुँचाना गौरवपूर्ण उपलब्धि बताया।
राष्ट्रीय चेतना और संकल्प:
‘राष्ट्र प्रथम’ की भावना पर ज़ोर दिया और इसे पुस्तक के मूल संदेश के रूप में रेखांकित किया।
लेखन की साहसिकता:
आत्मकथा लिखना एक कठिन कार्य बताया और लेखक की ईमानदारी व चित्र चयन की सराहना की।
निष्कर्ष: यह भाषण केवल एक पुस्तक विमोचन नहीं, बल्कि लोकतंत्र, राष्ट्रवाद, और व्यक्तिगत संघर्षों से उपजी आत्मकथा के माध्यम से पूरे राष्ट्र के लिए एक प्रेरणा संदेश है। उपराष्ट्रपति ने गहन भावनाओं, व्यक्तिगत अनुभवों और ऐतिहासिक घटनाओं के माध्यम से पुस्तक की आत्मा को जनता तक पहुँचाया।